रानी बहुत बैचेन है करन से मिलने की चाह उसे बार बार दरवाजे के पास खींच रही है। आधी रात बीत चुकी है लेकिन अभी तक करन नही आया। बिना की भय के रानी तय करती है कि आज वो उसी खुफिया रास्ते से करन से मिलने जायेगी।
रानी | मुख्य किरदार |
दामोदर | पिता |
शांति देवी | मां |
श्यामू | भाई |
सुलोखन | दामोदर के मित्र |
रोहित | पति |
करन | रोहित का छोटा भाई |
दयाचंद | ससुर |
गुफा में अंदर बहुत अधेंरा है रानी सहमी हुई अंदर बड़ रही है। डरी हुई सहमी हुई उस दरवाजे की खोज करती है जिससे होकर करन आता है। उसे सामने की तरफ से एक बिंदु के समान प्रकाश दिखता है जो पहले नही था।
रानी उसी प्रकाश की तरफ जल्दी से बढ़ती है। पास जाकर उसे एक खिड़की दिखती है। रानी के चेहरे से प्रेमी से मिलने की ललक साफ देखी जा सकती है। खिड़की खोल वो जल्दी से अन्दर आती है। बेड पर सो रहे करन के सीने से जाकर लिपट जाती है। थोड़ी देर बाद रानी महसूस करती है कि उसके सिर पर कोई हाथ फेर रहा है। जैसा ही उसने ऊपर की तरफ देखा, उसके देखते ही ऐसा हुआ जेसे कि उसके पैरो से जमीन ही खिसक गई हो।
सामने अपने ससुरजी को देखकर बेड से नीचे खड़ी हो जाती है। रानी को उसके देवर के साथ नाजायज संबंध के लिऐ ससुर ( दयाचंद ) उसे बुरा भला सुनाने लगते है और घर से बाहर करने की धमकी देते है। रानी अपने गरीब पिता सुलोखन की इज्जत के लिए से दयाचंद के पैरो में पड़ जाती है। इस काम के लिए माफी मांगती है और आगे से इस तरह की गलती ना करने का भरोसा दिलाती है। काफी देर के बाद दयाचंद्र को रानी पर रहम आ जाता है और वो उसे अलग तरीके से पैरो से उठाकर गले से लगा लेता है।
रानी तुरंत दयाचंद की बाहों से छूटकर नीचे गिर जाती है। वो बोलती है कि आप उसके साथ ऐसा नहीं कर सकते। उससे अनजाने में जो गलती हुई है उसके लिए उसे इतनी बड़ी सजा मत दो उसे माफ कर दो। आगे से वो ऐसी गलती कभी नही करेंगी। दयाचंद उसकी एक नही सुनता और यह सब रोहित को बताने की धमकी देता है। रानी बेबस है जो दयाचंद की सभी बातों को मान लेती है।
दयाचंद उससे कहता है कि करन आज नही उठेगा क्योंकि उसे नशे की दवा खिला दी है इसलिए डरने की बात नही है। दयाचंद फर्स पर ही चटाई बिछाकर उसे लेटने को कहता है। कमरे की लाइट बुझते ही रानी बैचेन हो होती है। उसकी आंखों से आंसू आने लगते है। वो सोचती है हा आखिर इस जिस्म की प्यास ने इसे किस मुसीबत में फसा दिया।
थोड़ी देर की पीड़ा रहित तड़प के बाद वो भी दयाचंद का साथ देने लगती है। सुख भोग के बाद दयाचंद उसे उसी गुप्त दरवाजे से जाने को बोलता है और कहता है कि आगे से वो करन से नही मिलेंगी। रानी अपनी गर्दन हिलाकर हा बोलते हुए अपने कमरे में चली जाती है। जिस्म की प्यास उसे ले गई नई मुसीबत मे, या इसकी ही चाहत थी दिल में ।
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